INVESTIGATIVE JOURNALISM खोजी पत्रकारिता
- डाॅ सचिन बत्रा, असोसिएट प्रोफेसर, जनंचार विभाग, शारदा विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा
खोजी पत्रकारिता को अन्वेषणात्मक पत्रकारिता भी कहा जाता है। सच तो यह है कि हर प्रकार की पत्रकारिता में समाचार बनाने के लिए किसी न किसी रूप में खोज की जाती है यानि कुछ नया ढूंढनेे का प्रयास किया जाता है फिर भी खोजी पत्रकारिता को सामान्य तौर पर तथ्यों की खोजने से अलग माना गया है। खोजी पत्रकारिता वह है जिसमें तथ्य जुटाने के लिए गहन पड़ताल की जाती है और बुनी गई खबर में सनसनी का तत्व निहित होता है। विद्वानों का मत है कि जिसे छिपाया जा रहा हो, जो तथ्य किसी लापरवाही, अनियमितता, गबन, भ्रष्टाचार या अनाचार को सार्वजनिक करता हो अथवा किसी कृत्य से जनता के धन का दुरूपयोग किया जा रहा हो ऐसे समाचारों को सामने लाना खोजी पत्रकारिता है। कुल मिलाकर सत्य और तथ्य का रहस्योद्घाटन करना यानि किसी बात की तह तक जाना, उसका निष्पक्ष निरीक्षण करना और उस विषय से जुड़े संदर्भ, स्थितियां परिस्थितियां व गड़बड़झाले को रेखांकित करना खोजी पत्रकारिता है। यह भी कहा गया है कि जब तथ्यों की पड़ताल, दस्तावेजों की खोज के अलावा किसी भी गलत काम को साबित करने वाले सभी साक्ष्यों को अपने बलबूते हासिल करते हुए एक संवाददाता समाचार बनाता है उसे ही खोजी पत्रकारिता माना जाएगा। खोजी पत्रकारिता का उद्देश्य बदले की भावना या निजी हित नहीं होना चाहिए बल्कि स्वप्रेरित नैतिकता और आचार संहिता को आधार मानते हुए जिस जानकारी को बेपर्दा किया जा रहा है उसका जनहित से सीधा संबंध होना चाहिए।
खोजी पत्रकारिता को जासूसी करना भी कहा जाता है। इसे न्याय दिलाने का समानांतर माॅडल और जनता के लिए तय कानून और व्यवस्था को दायित्वपूर्ण बनाए रखने वाला मध्यस्थ भी कहा जा सकता है। यह गहन जांच-परख और अनुसंधान की एक लंबी प्रक्रिया होती है। इसे सच को सामने की प्रक्रिया भी कहा जाता है इसमें दस्तावेजों की खोज, उनका अध्ययन, साक्षात्कार, मौके की निगरानी, सतर्कता से पड़ताल और घात लगाकर यानि छिपकर सच्चाई को तलाशने के प्रयास किए जाते हैं। खास बात यह है कि खोजी पत्रकारिता में धैर्य, अथक परिश्रम और समय का बहुत महत्व होता है। इसके अलावा खोज के लिए कई बार कई संवाददाताओं को मिलकर काम करना होता है और पर्याप्त धन की भी आवश्यकता होती है।
खोजी पत्रकार के गुण-
एक खोजी पत्रकार में अनियमितता सूंघने की क्षमता, सतर्कता, धैर्य, अथक परिश्रम, स्त्रोत निर्माण व जनसंपर्क में महारथ, निरीक्षण, संतुलन, सत्य परीक्षण, संदेह की प्रवृत्ति, दस्तावेज जुटाने का हुनर, तथ्यों को जांचने और परखने का कौशल, दबाव सहने की क्षमता, निष्पक्षता और निर्लिप्तता, लेखन में सटीक शब्दों का चयन सहित कानूनों का ज्ञान और पेचीदा विषयों पर समाचार लेखन में बचाव की तकनीक जैसे सभी गुर होने चाहिए। हालांकि उपरोक्त गुण हर प्रकार की पत्रकारिता के लिए आवश्यक हैं लेकिन खोजी पत्रकारिता में अतिरिक्त सतर्कता, संतुलन और सावधानी की आवश्यकता होती है। उल्लेखनीय है कि आज का दौर महज समाचारों का दौर नहीं है, सम्पादक भी अपेक्षा करते हैं कि उनका संवाददाता समाचारों की तह में छिपे समाचार को खोजने और प्रस्तुत करने में समर्थ होना चाहिए। इसीलिए संपादक संवाददाता से अक्सर पूछते हैं कि खबर में खबर क्या है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि सभी अपने समाचारों को अलग और विशिष्ठ अंदाज़ में परोसना चाहते हैं जिससे समाचारों के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता या साख बनी रहे। ऐसे में जब सामान्य समाचारों के लिए संपादकों की मांग के नियम लगातार कड़े होते जा रहे हो, तब खोजी समाचारों से जनता के भीतर विश्वास की नींव मजबूत करना और पत्रकारिता में अपनी प्रतिष्ठा में उतरोत्तर वृद्धि करना आसान प्रक्रिया नहीं है। खोजी पत्रकारिता संवाददाताओं से अधिक गुणों की मांग इसलिए भी करती है क्योंकि अगर संवाददाता अपने अनुभव के आधार पर सधे और संतुलित तरीके से खोज करते हुए किसी समाचार के आगामी परिणाम का अंदाज़ा नहीं लगा सकता तो एक गलती उसके लिए गंभीर स्थितियां भी पैदा कर सकती है।
खोजी पत्रकारिता क्यों-
आम तौर पर जहां शक्ति, धन, सम्पत्ति और सत्ता होती है वहां लालफीतास्याही, दस्तावेजों में हेराफेरी, अनियमितताएं, काम में लापरवाही, षड़यंत्र, गबन और नियत तोड़ने के बाद जानकारी छुपाने जैसे अपराध होने की संभावना बनी रहती है। इसके अलावा किसी व्यक्ति विशेष को लाभ या नुक्सान पहुंचाने के लिए पद व धन के दुरूपयोग जैसी स्थितियां कहीं न कहीं बनती ही हैं। ऐसे उल्लंघनों पर नकेल डालने के लिए खोजी पत्रकारिता की जाती है। माना जाता है कि सरकार, कंपनियां, संगठन, संस्थान और व्यक्ति भी कई नियम, कानून, निर्णय और घटनाएं छिपाने का प्रयास करते हैं, जिनका दूसरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में खोजी पत्रकारिता उन छिपे अपराधों को सामने लाकर लोगों को न्याय दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक तर्क यह भी है कि हमें, हमारे समाज को, कानून की बागडोर संभालने के लिए अधिकृत लोगों कोे और जनहित के लिए निर्णायक पदों पर बैठे लोगों को समय-समय पर सतर्क किया जाना चाहिए कि गलत क्या और कैसे हो रहा है, कानून कहां तोड़ा जा रहा है, फैसलों में पक्षपात कहां है, व्यवस्था में लापरवाही या अपराध कहां और कैसे पनप रहा है। कुल मिलाकर खोजी पत्रकारिता, संतुलन कायम रखने वाली स्वप्रेरित जिम्मेदारी का निर्वाह करती है ताकि शक्ति, सत्ता और प्रभावपूर्ण पदों पर आसीन लोग अपने अधिकृत दायित्वों का निर्वाह उचित प्रकार से करते रहें। इसके अलावा हमारे प्रजातंत्र के तहत स्थापित राजनीतिक व्यवस्था में वचनबद्धता को स्थिर रखने के लिए भी खोजी पत्रकारिता बहुत जरूरी है क्योंकि सत्ता से जुड़े लोग जनता को लुभाने के लिए वादे करते हैं लेकिन बाद में कई वादे भुला दिए जाते हैं। यानि शक्ति, सत्ता और पद के प्रभुत्व को न्यायोचित दायरे में रखने, भ्रष्टाचार रोकने, उनकी निगरानी करने और जनहित में विकसित करने के लिए खोजी पत्रकारिता के महत्व को नकारा नहीं जा सकता।
(These photographs of Salman Khan & Saif Ali Khan was first discovered by Dr Sachin Batra, the then Reporter and Bureau of Sahara Samay Natonal News Channel. It was the outcome of an intensive investigation against the celebrities, who denied in the court about weapons and Salman also claimed that he never drove the Gypsy at his own. These photographs revealed that their claims were false.)
Dr Sachin Batra also revieled the first video of Slaman Khan's statement recorded by the Forest Department Officials in 1998, immediate after his arrest on alleged black bug poaching. The video links are as follows:
News Sory- https://www.youtube.com/watch?v=dFGyTxpAKBk
Video 1- https://www.youtube.com/watch?v=UMaYpkpC7rc&t=1s
Video 2- https://www.youtube.com/watch?v=zkCLvmjbjFg&t=1s
Video 3- https://www.youtube.com/watch?v=PMDDleHrn5c
खोजी पत्रकारिता के औज़ारः
रैकी यानि छानबीन-
खोजी पत्रकारिता में रैकी का विशेष महत्व है। रैकी को निरीक्षण करना भी कहा जाता है यानि किसी प्राथमिक जानकारी की पुष्टि करने के लिए मौके पर छानबीन करना। रैकी एक प्रक्रिया है जिसमें स्पाॅट यानि स्थल का निरीक्षण करते हुए अवलोकन किया जाता है। इसमें संवाददाता की संदेह की क्षमता, कल्पनाशीलता और अनुभव की परीक्षा होती है। रैकी के दौरान पत्रकार मौके पर संदेह के अलग-अलग आयामों की दृष्टि-दिशा में संदेहों को परखता और विश्लेषण करता है। उदाहरण के लिए एक पत्रकार रोडवेज के किसी बस स्टैण्ड पर गया तो वहां उसके मस्तिष्क में कानून और यात्रियों को बुनियादी सुविधाओं से जुड़े कुछ सामान्य संदेह हो सकते हैं जैसे कि कर्मचारियों की सेवाओं में कमीं या लापरवाही कहां हैं, लोगों को कुछ न कुछ परेशानी तो होगी ही, टिकट बिक्री में छुट्टे पैसे अवैध रूप से लिए जा सकते हैं, जनसुविधाओं में कुछ कमीं होगी, अधिकृत स्टाॅल पर तय कीमत से अधिक वसूली हो सकती है, प्रतिबंधित वस्तुए यानि तंबाकू या सिगरेट आदि तो नहीं बेची जा रही आदि।
रैकी का उदाहरण समझाने के लिए एक एक बार पत्रकारिता के विद्यार्थियों को कैमरा टीम के साथ बस अड्डा ले जाया गया और निरीक्षण के लिए विद्यार्थियों के चार समूहों को संदेह क्षेत्र दिए गए, उन्हें समझाया गया कि अगर आपका कैमरा लेकर जाएंगे तो आपकी पहचान सार्वजनिक हो जाएगी और संदेह की जांच नहीं हो पाएगी। मौके पर ऐसा ही हुआ, विद्यार्थियों ने अपने संदेहों की जांच के परिणाम बताए, उसके बाद कैमरा टीम के साथ बस अड्डे पहुंचे। विद्यार्थियों ने बताया था कि सार्वजनिक नलों में पानी नहीं आ रहा है, लेकिन कैमरा टीम के साथ पहुंचने पर पाया कि सभी नलों में पानी आ रहा है, पूछताछ में यात्रियों ने बताया कि यहां कभी भी पानी नहीं आता और मजबूरन यात्रियों को बोतलबंद पानी खरीदना पड़ता है। वहां अवलोकन किया तो पाया कि सभी स्टाॅल्स पर पानी की बेहिसाब बोतलें बिक्री के लिए रखी थी। इस रैकी से यह पता चला कि रोडवेज विभाग के कर्मचारी और स्टाॅल संचालकों में मिलीभगत है और जनता के लिए स्थापित प्याऊ का पानी बंद कर बोतलें बेचने वालों को फायदा पहुंचाया जा रहा है।
इसके बाद विद्यार्थियों को रैकी का उदाहरण समझाने के लिए हम एक दीवार के पीछे छिपकर अवलोकन में पाया कि सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान प्रतिबंधित होने के बावजूद यात्री ही नहीं रोडवेज के कर्मचारी भी बीड़ी-सिगरेट पी रहे हैं। उन दृश्यों को कैमरे में कैद करने के बाद रोडवेज अधिकारियों से पूछताछ की गई कि धूम्रपान प्रतिबंध के तहत कितने लोगों से जुर्माना वसूला गया। जवाब सुनकर आश्चर्य हुआ कि सार्वजनिक स्थलों पर सैकेण्ड हैण्ड स्मोकिंग रोकने के लिए बनाए कानून के तहत जुर्माने से जुड़ी कार्रवाई का कोई रिकार्ड उपलद्ध नहीं था।
इसी प्रकार रेलवे स्टेशन पर रैकी करने के बाद जानकारी मिली कि कुछ लोग लंबी दूरी की रेल में जनरल सीटों पर कब्जा कर लेते हैं और यात्रियों से पैसे वसूलकर उन्हें सीट देते हैं, उसके बाद अगले स्टेशन पर उतर जाते हैं। इसके कारणों की गहन पड़ताल में रेलवे के गैंगमैन की सांठ-गांठ उजागर हुई कि गैंगमैन रेल के प्लेटफार्म पर पहुंचने से पहले ही सर्विस लेन में डिब्बे का ताला खोलकर वसूली करने वाले गैंग को बैठा देता था। इस प्रकार रैकी खोजी पत्रकारिता का एक ऐसा तरीका है जिसमें मौके पर समाचार संकलन किया जा सकता है।
दस्तावेज हासिल करना-
खोजी पत्रकारिता में दस्तावेज का बहुत महत्व है क्योंकि दस्तावेज एक ऐसा साक्ष्य होता है जिसे नकारा या झुठलाया नहीं जा सकता। लेकिन दस्तावेज हासिल करना आसान काम नहीं है। सरकारी उपक्रमों, कार्यालयों और अन्य प्रतिष्ठानों से जुड़े दस्तावेज प्राप्त करने के लिए सूत्र या स्त्रोत संवाददाता के लिए वरदान होते हैं इसीलिए कहा जाता है कि एक पत्रकार की कामयाबी की कुंजी उसके सूत्रों का जाल होता है। हालांकि दस्तावेजों के मामले में खास सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि कई बार कर्मचारी अपने अधिकारियों से बदला निकालने के लिए ऐसे दस्तावेज संवाददाताओं को देते हैं जिससे अधिकारी को नुकसान पहुंचे लेकिन वे दस्तावेज आरोप के लिए उपयुक्त नहीं होते और उन साक्ष्यों पर आधरित समाचार के प्रकाशन से संवाददाता और समाचार की साख भी गिरती है। लिहाजा दस्तावेजों की दोहरे और तिहरे स्तर पर जांच और पुष्टि जरूर की जानी चाहिए। एक घटना उल्लेखनीय है जिसमें एक सरकारी विभाग में एक नए अधिकारी ने पदभार संभाला और पुराने कर्मचारियों की अनुशंसा पर एक फर्म के पक्ष में वर्क आर्डर जारी कर दिया। वर्क आर्डर लागू होने से पहले ही उस अधिकारी को फर्म की गड़बड़ी की जानकारी मिल गई और संशोधित आदेश में पुराने आर्डर को रद्द कर दिया गया। लेकिन वहां कार्यरत एक कर्मचारी ने अपने अधिकारी से बदला निकालने के लिए पुराने वर्क आर्डर की काॅपी और कार्यालय के रिकार्ड में उस फर्म के काली सूची में दर्ज होने से जुड़ा एक और दस्तावेज पत्रकार को दिया। जिससे अधिकारी के भ्रष्टाचार में लिप्त होने का समाचार प्रकाशित हो सके। इसके बाद संवाददाता ने सूत्र से प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर नकारात्मक समाचार बनाया लेकिन वरिष्ठ उप संपादक ने सावधानी बरतते हुए उस अधिकारी से बात की तो अधिकारी ने मूल दस्तावेज दिखाते हुए बताया कि संशोधित आदेश में फर्म का वर्क आर्डर रद्द कर दिया गया था। इस जानकारी से अधिकारी के निरपराधी होने की बात सामने आई। यदि पहले वाले दस्तावेज पर आधारित समाचार प्रकाशित हो जाता तो एक ईमानदार अधिकारी की कार्यशैली पर सवाल उठ सकते थे और समाचार भी गलत होता।
दरअसल दस्तावेज छुपाए गए निर्णयों को सार्वजनिक करने और किसी प्रक्रिया को समझने में अहम योगदान भी देते हैं। उदाहरण के लिए एक बार किसी पाठक ने जानकारी दी कि ई-मित्र क्योस्क पर बिजली के बिल जमा कराने के बावजूद भी बिजली विभाग बिल को बकाया बताकर जुर्माना लगा रहा है। स्थानीय लोगों से जमा बिल की रसीदें लेने के बाद बिजली विभाग में पूछताछ करने पर उन्होंने बकाया होने की बात कही। काफी मेहनत करने पर भी कोई जानकारी नहीं मिली तो ई-मित्र संचालक समिति के अधिकारियों से सूचना जुटाने का प्रयास किया गया। वहां भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला, इसके बाद सूत्रों की मदद ली गई तो सामने आया कि जिला कलेक्टर ने उस ई-मित्र क्योस्क का लाईसेंस अस्थाई रूप से निरस्त कर दिया है, लेकिन उसका दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किया गया। जानकारों ने बताया कि निरस्त ई-मित्र क्योस्क अवैध रूप से लोगों से पैसे लेकर बिल जमा की फर्जी रसीद दे रहा है और अब पोल खुलने पर दुकान बंद कर गायब है। दस्तावेजों पर आधारित इस मामले की गहन पड़ताल करने पर सामने आया कि कलेक्टर कार्यालय के कर्मचारी ई-मित्र संचालक से रिश्वत मांग रहे हैं। इस समाचार के प्रकाशन के बाद कलेक्टर पर भी सवाल उठा कि ई-मित्र क्योस्क का लाईसेंस रद्द करने की जानकारी सार्वजनिक क्यों नहीं की गई। आखिरकार इस समाचार के चलते ई-मित्र संचालक को धोखाधड़ी के तहत गिरफ्तार कर लोगों के बकाया बिल जमा कराए गए।
कुल मिलाकर खोजी पत्रकारिता में दस्तावेज ऐसे सुबूत का काम करते हैं जिनसे समाचार की विश्वसनीयता बढ़ती है। हालांकि अब सूचना प्राप्ति के अधिकार के तहत आवेदन कर कई पत्रकार सवाल पूछते हैं और जवाब में दस्तावेज की मांग करते हैं। जिसके आधार पर समाचार बनाने में दस्तावेज के अप्रामाणिक होने का खतरा नहीं होता। यानि दस्तावेजों के लिए सिर्फ सूत्रों पर निभर्रता नहीं है।
सवाल-जवाब या साक्षात्कार-
आम तौर पर पीडि़त, प्रत्यक्षदर्शी और सरकारी या निजी संस्थानों के अधिकारियों से भी बातचीत कर जानकारी प्राप्त की जा सकती है। लेकिन सवाल-जवाब या साक्षात्कार के दो नियम है एक यह कि आप अपनी पहचान गोपनीय रखते हुए पूछताछ करते हैं और दूसरा पहचान सार्वजनिक करते हुए जवाब प्राप्त कर सकते हैं। दोनों में से क्या ठीक रहेगा इसका फैसला संवाददाता के अनुभव और विवेक से तय होता है। क्योंकि कई बार संवाददाता को पहचान छिपाने से ही सूचना मिलती है और कुछ मामलों में पहचान सार्वजनिक किए बिना जानकारी पाना बेहद मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के लिए एक रोचक घटना है जिसमें एक ट्रैफिक पुलिस का हवलदार पान वाले से झगड़ रहा था। दोनों की तकरार समाप्त होने के बाद पास खड़े लोगों से कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ट्रैफिक पुलिस के हवलदार ने वाहन की चैकिंग की तो दस्तावेज पूरे नहीं मिले। इसपर उसने ड्राइवर को रिश्वत जमा कराने सड़क के पार पनवाड़ी के पास भेजा। अब हुआ यूं कि ड्राइवर ने पनवाड़ी से कहा कि हवलदार को हज़ार रूपए दिए हैं पांच सौ रूपए मंगवा रहा है। इसके बाद पनवाड़ी ने हवलदार को पांच उंगलियां दिखाते हुए पैसे देने की सहमति मांगी, हवलदार ने समझा पैसे जमा कराने की बात है तो उसने सहमति में सर हिला दिया। इसके बाद ड्राइवर पांच सौ रूपए लेकर चंपत हो गया। जब हवलदार हिसाब करने पनवाड़ी के पास गया तो पांच सौ रूपए कम निकले, इसपर दोनों में बहस हो गई।
यहां संवाददाता ने अपनी पहचान छिपाकर सूचना प्राप्त की लेकिन कई बार पहचान बताने पर ही सूचना मिल पाती है। एक बार एक अस्पताल में शव परीक्षण कक्ष के बार कुछ लोग तनाव में बैठे थे, जब कोई उनके पास आ जाता तो बात करना बंद कर देते। संवाददाता को संदेह हुआ तो उसने उनकी परेशानी जाननी चाही लेकिन उन्होंने कुछ नहीं बताया। जब पत्रकार होने की बात कही तो उन्होंने बताया कि वे मृतक के परिजन हैं और बीती रात से अपने संबंधी की शव पाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन पोस्टमार्टम विभाग के कर्मचारी लाश देने के लिए एक हज़ार रूपए मांग रहे हैं। इस प्रकार पहचान बताने पर ही सूचनाएं प्राप्त हो पाई। जिसपर समाचार भी बना और संवाददाता के हस्तक्षेप से उन्हें तुरन्त अपने संबंधी का शव भी मिल पाया।
निगरानी या औचक निरीक्षण-
इसे आॅन द स्पाॅट वेरीफिकेशन भी कहा जाता है। इसमें संवाददाता किसी अंदाजे या सूचना के आधार पर अचानक घटनास्थल पर पहुंच जाता है और या तो चुपचाप निगरानी करता है या फिर पूछताछ शुरू कर देता है। उदाहरण के लिए एक बार संवाददाता को अकाल राहत कार्य में धांधली कि शिकायत मिली, उसके बाद संवाददाता और कैमरामैन मौके पर पहुंचे तो पाया कि वहां गांव का कोई भी आदमी काम नहीं कर रहा था। उसके बाद नजदीक ही एक ढ़ाबे पर बैठकर गतिविधियों पर नज़र रखी गई। कुछ घंटों बाद अकाल राहत स्थल की ओर से मशीनों की आवाज़ आने लगी। वहां देखा तो पाया कि अकाल राहत कार्य जेसीबी की मदद से किया जा रहा है जबकि सरकारी योजना में गांव के लोगों को 100 दिन रोजगार और पारिश्रमिक देने का दावा किया गया था। इस दृश्य को कैमरे में कैद करने ग्रामीणों से बात की तो पता चला कि गांव के सरपंच ने अपने जानकारों के नाम दर्ज कर उनके बैंक खाते खोलकर अकाल राहत का पैसा हड़प रहा है।
इसी प्रकार स्कूलों में परीक्षा का औचक निरीक्षण करने के लिए संवाददाता ने यह तय किया कि ऐसे सरकारी स्कूल का दौरा करेंगे जहां पक्की सड़क नहीं जाती हो। इसके बाद दो स्कूलों का मोआयना किया लेकिन वहां सब ठीक मिला। जब रेत के टीलों से होते हुए एक गांव में पहुंचे तो वहां सरकारी स्कूल पर ताला लगा था। जब संवाददाता ने खिड़कियों से अंदर झांका तो बोर्ड पर उस दिन की तारीख, समय और परीक्षा की पूरी जानकारी लिखी हुई थी, यही नहीं जमीन पर चैकोरे बनाकर विद्यार्थियों के रोलनंबर भी दर्ज किए हुए दिखाई दिए। अब सवाल यह उठा कि परीक्षा के समय स्कूल पर ताला कैसे लगा है। इसका पता लगाने के लिए गांव के लोगों से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि स्कूल के मास्टर तो कभी आते ही नहीं हैं। मौके पर पाया कि जिन बच्चों की परीक्षा होनी थी उनमें से कई खेत में काम कर रहे थे। इस प्रकार औचक निरीक्षण से एक समाचार की खोज की गई।
धन का अनुवर्तन-़
कहतें हैं कि धन का लालच अपराध को जन्म देता है और जहां सत्ता, शक्ति और सरकार है वहां वैध और अवैध तरीके से धन जुटाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसा नहीं है सभी जगह ऐसा हो मगर आम तौर पर धन से जुड़ी व्यवस्था में किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार होता ही है। इसीलिए एक संवाददाता को पैसे का लेनदेन देखना और समझना चाहिए यानि धन का पीछा करना चाहिए और असामान्य लेनदेन को जांचना-परखना चाहिए। आप अपने जीवन में ऐसे कई उदाहरण अपने इर्द गिर्द देखते हांेगे वाहन चालकों से पैसे लेता हुआ ट्रेफिक पुलिस वाला, रेलवे के माल गोदाम में पैसे देते लेते लोग आदि। यह तो एक आम दृष्य है लेकिन आप सोचिए कि एक सरकारी कार्यालय के बाहर अगर कोई पान की दुकान पर नोटों की गड्डी दे रहा है तो यह निश्चय ही संदेह का विषय हो सकता है और खास तौर पर रूपए लेते समय लेने और देने वालों का विशेष सावधानी बरतना यानि अपने आस-पास सतर्कतता बरतते हुए जल्दबाजी में लेना और छिपाना भी संदिग्ध गतिविधि है। ऐसी बातों पर खास ध्यान देते हुए पड़ताल करनी चाहिए।
उदाहरण के लिए एक बार संवाददाता ने देखा कि नगर निगम कार्यालय में जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र देने की खिड़की पर लोग आवेदन पत्र में 50 रूपए का नोट छिपाकर जमा करा रहे हैं और कर्मचारी सावधानी बरतते हुए नीचे झुककर रूपए संभाल रहा है। लोगों से हल्की फुल्की पूछताछ करने पर उन्होंने बताया कि शुल्क तो दस रूपए है लेकिन पैसे लिए बिना काम नहीं होता। इस प्रकार धन का पीछा करने पर एक समाचार प्राप्त हुआ। इसके अलावा भी कई बार धन का भुगतान कागजों में दिखाया जाता है लेकिन उसके बदले कोई काम नहीं किया जाता। अक्सर समाचारों में पढ़ने को मिलता है कि कांट्रेक्टर को रिश्वत के बदले भुगतान किया जाता है और निर्माण से जुड़े दस्तावेजों में धन का अत्यधिक व्यय दिखाया जाता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए धन का पीछा करने पर समाचार मिलना तय माना जाता है लेकिन यह आपके संदेह और उसकी जांच पर भी निर्भर करता है साथ ही इसमें भी आपका अनुभव मददगार साबित होता है। अक्सर घोटालों के समाचारों की खोज धन का पीछा करने से ही प्राप्त होती है हालांकि इसमें धन से जुड़े दस्तावेजों का अध्ययन और विश्लेषण भी किया जाता है।
घात लगाकर सुबूत जुटाना-
इसे स्टिंग आॅपरेशन, घात पत्रकारिता या डंक पत्रकारिता भी कहा गया है। जैसा कि उपरोक्त बिंदुओं में बताया गया है कि धन का पीछा करना, निगरानी, औचक निरीक्षण और पूछताछ आदि खोजी पत्रकारिता में सहायक होती है। उसी प्रकार स्टिंग आॅपरेशन में भी यही बिंदू काम आते हैं। दरअसल घात पत्रकारिता खोजी पत्रकारिता की कोख से ही निकली है लेकिन इसमें दस्तावेज से अधिक दृश्य या फोटो का विशेष महत्व होता है क्योंकि घात पत्रकारिता में दृश्यों को सुबूत की तरह इस्तेमाल किया जाता है। टीवी माध्यमों में स्टिंग आॅपरेशन का प्रचलन अधिक है क्योंकि यह सनसनी पैदा करती है। लेकिन आज के दौर में किसी गड़बड़ी का छिपकर फिल्मांकन करना या पहचान छिपाकर यानि डेकाॅय बनकर छल से किसी कुकृत्य, गैरकानूनी काम, मिलावट, साजिश, लापरवाही, अपराध, जालसाजी या रिश्वतखोरी को प्रमुखता से दिखाया जाता है क्योंकि उस सनसनी से दर्शक उत्तेजित होते हैं। हमारे देश में इंडियन एक्सप्रेस के अश्विनी सरीन, वरिष्ठ पत्रकार व सांसद रहे अरूण शौरी, तहलका के वरिष्ठ पत्रकार अनिरूद्ध बहल व तरूण तेजपाल, द हिन्दू के संपादक पी साईनाथ, आजतक न्यूज़ चैनल के दीपक शर्मा व धीरेंद्र पुंडीर जैसे कई जाने माने खोजी पत्रकारों ने समाचार संकलन के क्षेत्र मंे गहन शोध की परंपरा को आगे बढ़ाया है। इसी प्रकार विकी लीक्स ने भी स्विस बैंक में काले धन की खोजी जानकारी सार्वजनिक कर विश्वव्यापी बहस को जन्म दिया। दरअसल स्टिंग आॅपरेशन का सीधा संबंध गोपनीयता से है, इसमें संवाददाता अपनी पहचान छिपाकर या किसी अन्य व्यक्ति की मध्यस्थता से गलत काम करने वालों की गोपनीय कारगुजारियों को अपनी नियंत्रित स्थितियों में प्रेरित करता है और उसे कैमरे में कैद किया जाता है। स्टिंग आॅपरेशन आसान काम नहीं है क्योंकि इसके लिए सही तरीका, समय और स्थितियों को बुनना पड़ता है। यही नहीं स्टिंग के लिए आपके पास पर्याप्त संसाधन होने भी जरूरी हैं। इसमें स्पाई कैमरा वाॅयस रिकार्डर और कई बार मिनी सीसीटीवी कैमरे का भी इस्तेमाल किया जाता है। यह जानना जरूरी है कि जब किसी स्टिंग के विरोध में कोई अदालत का दरवाजा खटखटाता है तो संवाददाता को जवाब भी देना पड़ सकता है कि जो स्टिंग किया गया है वह जनहित से कैसे संबध रखता है। यही नहीं मांगे जाने पर संवाददाता को फाॅरेंसिक जांच के लिए उन दृश्यों की मूल प्रति भी देनी पड़ सकती है। जिसमें वीडियो के प्रामाणिक होने की जांच की जाती है और प्रसारण में अनावश्यक संपादन पाए जाने पर कटघरे में खड़ा किया जा सकता है। अक्सर निजता के अधिकार का उल्लंघन, शासकीय दस्तावेजों की गोपनीयता के कानून और किसी की मानहानि जैसे सवालों के जवाब पाने की बाद ही स्टिंग आॅपरेशन किया जाना चाहिए। लिहाजा स्टिंग आॅपरेशन के लिए अतिरिक्त सावधानी और समझदारी की आवश्यकता होती है।
इतिहास खंगालना-
खोजी पत्रकारिता में कई बार किसी मामले से जुड़े पुराने पक्ष आपके समाचार के खोज मूल्य को बढ़ा देते हैं। इसमें पुराने सरकारी दस्तावेज, समाचार पत्रों में प्रकाशित पुराने समाचार, किताबें और पत्रिकाओं में प्रकाशित पुराने आलेख भी किसी विषय, व्यक्ति या घटना के अन्य पहलुओं को जानने सहित बदलाव को समझने में सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए एक बार एक राजनीति पार्टी के संचालक एक जिले में सदस्यों का पंजीकरण के लिए पहुंचे। इससे पहले तक वहां उनकी पार्टी के नाम पर बिना रजिस्ट्रेशन के ही कुछ लोग खुदको पार्टी का सदस्य बताते थे। जब पार्टी के नेता ने प्रेसवार्ता में रजिस्ट्रेशन से जुड़ी जानकारी दी, तब संवाददाता ने दस्तावेज दिखाते हुए सवाल किया कि जिन लोगों को सदस्य बनाया जा रहा है उनमें से अधिकांश के नाम पर पुलिस थानों में हिस्ट्रीशीट खुली हुई है। यह सुनकर पार्टी के नेता को झटका लगा और तुरन्त पूरे प्रदेश का दौरा स्थगित करते हुए अपने राज्य लौट गए। इसी प्रकार एक अन्य समाचार में सरकार ने एक फ्लाईओवर के निर्माण की घोषणा की और ठेकेदारों का चुनाव कर लिया गया। जब संवाददाता ने इससे जुड़ी पुरानी सूचनाओं को खंगालना शुरू किया तो सामने आया कि यह योजना पहले भी स्वीकृत हुई थी और ठेका मंत्री के बेटे को दिया जाना तय हुआ था। जब मीडिया में इसपर आपत्ति हुई तो पूरा प्रोजेक्ट ही बंद कर दिया गया। इसके बाद नई योजना में स्वीकृत ठेकेदारों के नाम की पड़ताल की तो उसी मंत्री के बेटे के पक्ष में दोबारा टेंडर जारी होने की बात सामने आई। इसपर संवाददाता ने पुरानी खबर का हवाला देते हुए खोजी समाचार दिया और विभाग ने मामले पर जांच कमेटी निुयक्त कर टेंडर की प्रक्रिया नए सिरे से करने का आदेश दिया गया। इस प्रकार इतिहास में दर्ज खबरों का हवाला देकर असरदार खोजी खबरें तैयार की जा सकती हैं।
प्रयोगशाला और यंत्र परीक्षण-
खोजी पत्रकारिता में किसी फोटो, फिल्म, कम्प्यूटर, मेमोरी कार्ड, मोबाईल फोन, इंटरनेट का आईपी एडरेस, उत्पाद, वस्तु, पदार्थ, द्रव्य और दवा की अलग-अलग प्रयोगशालाओं से जांच भी सुबूत हासिल करने का एक ज़रिया होती है। उदाहरण के लिए संवाददाता को अपने सूत्र से जानकारी मिली कि एक दुकान पर खाद्य पदार्थ में नशे की मात्रा होने से उसकी बिक्री अधिक होती है, उसके बाद उस पदार्थ को बिल सहित खरीदा गया और प्रयोगशाला जांच के लिए भिजवाया गया। जांच में मादक पदार्थ का वैज्ञानिक नाम, उसका प्रतिशत और वह मादक पदार्थों की श्रेणी जैसी तमाम जानकारियों की रिपोर्ट हासिल हुई। इस खोजी समाचार प्रकाशन के बाद संबंधित विभाग ने छापा मारकर माल जब्त किया और गिरफ्तारी की। हालांकि इस प्रकार की प्रायोगिक जांच के लिए संवाददाता को धन व्यय करना पड़ता है लेकिन यदि समाचार संस्थान उसके महत्व को समझता है तो संवाददाता को व्यय की गई रकम का भुगतान करता है। लेकिन कुछ प्रयोगशाला जांच ऐसी होती हैं जिनकी सुविधा निजी प्रयोगशालाओं के पास नहीं होती। ऐसे में संवाददाता पुलिस, विश्वविद्यालय प्रयोगशाला, स्वास्थ्य विभाग और खाद्य एंव दवा जैसे विभाग की सहायता से जांच करवाकर मानक स्तर पर होने या न होने की रिपोर्ट प्राप्त करते हैं। गौरतलब है कि प्रयोगशाला जांच रिपोर्ट के आधार पर मिलावट या गड़बड़ी पाए जाने पर संबंधित के खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है और रिपोर्ट के आधार पर अदालत भी संज्ञान ले सकती है।
आॅनलाइन खोज-
आजकल गूगल का ज़माना है ऐसे में किसी भी जानकारी को इंटरनेट के जरिए प्राप्त किया जा सकता है। आॅनलाइन पड़ताल, खोजी पत्रकारिता के लिए एक नया औज़ार है क्योंकि इससे किसी मामले या विषय का ऐतिहासिक पहलू भी जाना जा सकता है और वर्तमान स्थिति का आंकलन और निगरानी भी की जा सकती है। गूगल पर आप किस का नाम दर्ज करें तो उससे जुड़ी तमाम अपलोडेड सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं। इसके अलावा अधिकांश लोग फेसबुक, ट्विटर और वाॅट्स एप जैसे प्रचलित सामाजिक संचार मंचों का इस्तेमाल कर रहे हैं। संचार के ऐसे नए मार्ग कभी-कभी किसी व्यक्ति के व्यवहार, संबंध और उसकी मनःस्थिति जानने में सहायक होते हैं। खोजी पत्रकारिता में ऐसे आॅनलाइन मंच सूचनाओं को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उदाहरण के लिए एक प्रसिद्ध महिला की आत्महत्या का मामला सामने आने के बाद उसके ट्विटर अकाउंट में दर्ज संवाद को देखने से पता चला कि वह अपने पति के सौतेले व्यवहार से आहत थी। यही उसकी आत्महत्या का कारण भी बना। इसी प्रकार संवाददाता ने एक लापता स्कूली छात्र के फेसबुक से सूचनाएं जुटाई, जिसमें लापता होने के समय उसने क्या लिखा, कौनेसे फोटो शेयर किए और उसके दोस्त कौन-कौन हैं इसका पता चला। लापता होने से पहले उस छात्र ने मुम्बई का फोटो शेयर किया था और वह एक्टर बनना चाहता था। जब उसके खास दोस्तों से संपर्क साधा गया तो पता चला कि वह दोस्तों से पैसे उधार लेकर मुम्बई गया है। यह जानकारी पुलिस को मिलने के बाद एक सघन अभियान छेड़ा गया और उस छात्र को मुम्बई से तलाशकर लाया गया। इस प्रकार सोशल साइट्स के कई नए फीचर भी किसी व्यक्ति की पड़ताल में सहायक होते हैं जैसे कई लोग फेसबुक पर लोकेशन अपडेट करते हैं। ऐसे में कोई घटना होने पर उसकी अपडेटेड आखिरी लोकेशन पर कुछ सुराग तलाशे जा सकते हैं।
केस स्टडीज यानि घटनाओं का संदर्भ-
केस स्टडी का मतलब होता है किसी की आपबीती का विश्लेषण। जिसमें एक या एक से अधिक मामलों या घटनाओं का अध्ययन कर संदर्भ दिया जाता है। यह संदर्भ कई व्यक्तियों से संबंधित हो सकते हैं या उनमें घटना स्थल एक हो सकता है या फिर उसका पैटर्न एक जैसा हो सकता है। कभी-कभी समाचार पत्रों में केस स्टडीज पढ़ने को मिलती है। जैसे एक बार संवाददाता को एक इलेक्ट्राॅनिक आयटम्स के दुकानदार की शिकायत मिली कि वह कम दाम पर लेपटाॅप देने का झांसा देकर लोगों से पैसे ले लेता है और बाद में रकम वापसी का चैक थमा देता है, जो बैंक में डालने पर अनादरित हो जाता है। इस मामले की खोजबीन में संवाददाता ने उस शो-रूम के बाहर निगरानी शुरू की और गुस्से में बाहर निकलने वाले ग्राहकों को विश्वास में लेकर बातचीत करने पर दुकानदार की झांसेबाजी के कई पीडि़त मिल गए। उनकी शिकायत व सुबूतों के आधार पर चार-पांच घटनाओं को एक साथ प्रकाशित किया गया। इसके बाद तो अन्य पीडि़त भी पुलिस थाने पहुंचकर रिपोर्ट दर्ज कराने लगे। यानि एक खोजी समाचार ने लोगों को सतर्क कर दिया और चंद ही दिनों में पूरे प्रदेश के पुलिस थानों में 500 से अधिक मामले सामने आए। इसपर दुकानदार की गिरफ्तारी हुई और मामला अदालत पहुंचा फिर दुकानदार पर जुर्माना कर जेल भेजा गया। इस प्रकार केस स्टडीज यानि संदर्भ खोजी पत्रकारिता में एकाधिक मामलों या घटनाओं का अनुसंधान करने और प्रस्तुत करने का एक बेहतरीन मार्ग है।
आंकड़ा विश्लेषण-
आम तौर पर आंकड़ा विश्लेषण शोधार्थियों के लिए ही उपयोगी माना जाता है लेकिन उपलब्ध आंकड़े या सर्वे के जरिए अर्जित किए आंकड़े भी खोजपरक पत्रकारिता के दायरे में आते हैं। उदाहरण के लिए संवाददाता ने ट्रेफिक पुलिस विभाग से वाहन चालकों के चालान के छमाही आंकड़े प्राप्त किए। आंकड़ों का विश्लेषण करने पर यह सामने आया कि मोबाइल पर बात करते हुए वाहन चलाने और ध्वनि प्रदूषण करने वाले वाहनों के चालान की संख्या शून्य थी। इसके बाद संवाददाता और कैमरामैन शहर के मुख्य चैराहे पर पहुंचे। वहां मोबाइल पर बात करते हुए वाहन चलाने की कई तस्वीरें कैमरे में कैद की। इस प्रकार आंकड़ा विश्लेषण से एक खबर की दिशा मिली। आप जानते हैं कि अक्सर चुनाव में भी मतदाताओं की राय जानने के लिए सर्वे किया जाता है। उन आंकड़ों को जोड़कर परिणाम प्राप्त किए जाते हैं और विविध प्रश्नों पर लोगों के जवाबों पर आधारिक आंकड़े को प्रतिशत में बदला जाता है। इस प्रकार यह अंदाज़ा लगता कि अधिकांश लोगों की मान्यताएं और मानसिकता क्या है। यह प्रयोग बहुत सफल होता है और इससे प्राप्त नतीजे भी बहुत सटीक होते हैं। हालांकि आंकड़ा संकलन के लिए सर्वे प्रक्रिया पर्याप्त समय, श्रम और पूंजी की मांग करती है लेकिन खोजी पत्रकारिता में इसका अपना महत्व है।
हर समाचार का मूल मंत्र खोज है-
खोजी पत्रकारिता को कई लोग सिर्फ अपराध से ही जोड़ देते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल सभी प्रकार के समाचार में खोज की संभावना होती है। चाहे आप व्यापारिक समाचार बना रहे हों, फिल्म से जुड़े समाचार बुन रहे हों या फिर लोगों के बीच प्रचलित फैशन, ट्रेंड्स और नव परंपराओं की बात कर रहे हों। हर क्षेत्र में अन्वेषण यानि खोज ही पत्रकारिता और समाचार को अधिक सार्थक और विश्वसनीय बनाती है। उदाहरण के लिए संवाददाता को एक डाॅक्टर ने बताया कि कई गर्भवती महिलाएं प्राकृतिक रूप से बच्चा पैदा करने के बजाए आॅपरेशन करवा रहीं हैं। इस बात की पड़ताल करने पर सामने आया कि कई महिलाएं तो प्रसव पीड़ा से गुज़रना नहीं चाहतीं इसीलिए प्राकृतिक प्रक्रिया से बच्चे को जन्म देने के बजाए आॅपरेशन करा रही हैं। दूसरा तथ्य यह उजागर हुआ कि कुछ गर्भवती महिलाए ज्योतिष परामर्श लेकर एक निश्चित तारीख को शुभ मानते हुए आॅपरेशन से डिलीवरी करवा रही हैं। इस प्रकार की घटनाओं या प्रवृत्ति को अपराध के दायरे में नहीं रखा जा सकता लेकिन इसमें बदलाव को खोजकर समाचारों में रेखांकित किया जाता है। इसीलिए यह भी खोजी पत्रकारिता ही है।
- डाॅ सचिन बत्रा
असोसिएट प्रोफेसर, डिपार्टमेंट आॅफ माॅस कम्युनिकेशन,
शारदा विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा
9540166933
This article is published in the prestigious website of Media Professional & Academicians
http://www.newswriters.in/2015/06/04/investigative-journalism/
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लेखक परिचय- डाॅ सचिन बत्रा जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय से पत्रकारिता एवं जनसंचार में एमए और यूनिवर्सिटी टाॅपर हैं। उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता में पीएच-डी की है, साथ ही फ्रेंच में डिप्लोमा भी प्राप्त किया है। उन्होंने आरडब्लूजेयू और इंटरनेश्नल इंस्टीट्यूट आॅफ जर्नलिज्म, ब्रेडनबर्ग, बर्लिन के विशेषज्ञ से पत्रकारिता का प्रशिक्षण लिया है। वे दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और दैनिक नवज्योति जैसे समाचार पत्रों में विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं और उन्होंने राजस्थान पत्रिका की अनुसंधान व खोजी पत्रिका नैनो में भी अपनी सेवाएं दी हैं। इसके अलावा वे सहारा समय के जोधपुर केंद्र में ब्यूरो इनचार्ज भी रहे हैं। इस दौरान उनकी कई खोजपूर्ण खबरें प्रकाशित और प्रसारित हुई जिनमें सलमान खान का हिरण शिकार मामला भी शामिल है। उन्होंने एक तांत्रिका का स्टिंग आॅपरेशन भी किया था। डाॅ सचिन ने एक किताब और कई शोध पत्र लिखे हैं, इसके अलावा वे अमेरिका की प्रोफेश्नल सोसाइटी आॅफ ड्रोन जर्नलिस्टस के सदस्य हैं। सचिन गृह मंत्रालय के नेशलन इंस्टीट्यूट आॅफ डिज़ास्टर मैनेजमेंट में पब्लिक इंफार्मेशन आॅफिसर्स के प्रशिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध हैं। उन्होंने प्रिंट और इलेक्ट्राॅनिक मीडिया में 14 वर्ष काम किया और पिछले 5 वर्षो से मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
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