Tuesday, June 30, 2020

डिजिटल हिंदी भारत अभियान — कौशल विकास का एक सफर

#डिजिटलहिंदीभारत अभियान — #digitalhindiindia movement

                             — प्रो. (डॉ.) सचिन बत्रा                - Prof. (Dr.) Sachin Batra

The "Digital Hindi India", an exclusive and innovative training was developed in January 2011 after successfully achieving the handsome experience of 15 years in Print Journalism & TV News Reporting. The 40 minutes workshop is specially crafted for the students of Journalism & Mass Communication to help them work in digital Hindi. During this rare workshop, the students of Media Studies are taught about the alphabet arrangements of Unicode Hindi (Mangal) on the keyboard while playing the mind byte game. It will surprise you that, no computer or keyboard is used during the innovative session of "Play and Learn". The students don't even write or make notes they are provided a single coded paper of Alphabetical Design, which is destroyed by the students within 48 hours. following the workshop tips the students are encouraged to practice for a week and then involved with the reporting, writing and newspaper production activity. This way they earn a skill and polish their presentation for all communication techniques required by the media. 

These workshops helped students to achieve jobs during Internships, as it is not a center point of training in the Institutes, Colleges as well as Universities also. Whereas the high number of jobs are offered in Hindi by Newspapers, Magazines, TV Channels, Radio Broadcast, by other companies for Content Writing, Book Publishing, Translation, Public Relations, Websites, Digital Platforms, Marketing, Product Sales, etc. Unfortunately, the key skill is ignored / not identified or not categorized for training, the reason followed with a question that- Who will train? As an industry professional, I took that challenge to transform the industry desired skills among the students, to develop them as productive, eligible and most suitable skilled candidates for the jobs. The workshop really helped the students to translate their dreams into reality and hundreds of students are now working in the reputed brands of Media. The achievements of the students motivated me with their success stories to continue with the workshop termed by the students as 'Magic for Media' and the journey of #digitalhindiindia is on and on and on..............

अखबारों और समाचार चैनल में लगभग 15 साल कार्य करने के बाद जब पत्रकारिता एवं जनसंचार के विद्यार्थियों को पढ़ाने का अवसर मिला तो यह पाया कि उन्हें कंप्युटर पर हिंदी यानि मंगल लेखन कोई नहीं सिखाता। जिसकी वजह से छात्र—छात्राओं में वही कौशल विकसित नहीं हो पाता, जिसे मीडिया में प्रवेश की पहली सीढ़ी कहा जाता है। लिहाजा वर्ष 2011 में एक नवाचार वि​कसित कर उसे डिजिटल हिंदी भारत अभियान के तहत एक प्रयोग के रूप में कार्यशाला आयोजित कर विद्यार्थियों को खेल—खेल में कंप्युटर पर हिंदी लेखन सिखाया गया। दिलचस्प बात यह रही कि सिर्फ 40 मिनट की कार्यशाला ( #डिजिटलहिंदीभारत ) में विद्यार्थियों को कंप्युटर के की—बोर्ड पर अंकित ध्वन्याक्षरों के समूह को कंठस्थ यानि याद करवा दिया गया। वह हंसी खेल की कार्यशाला इतनी सफल हुई कि आज भी उस कार्यशाला के बाद सिर्फ एक सप्ताह अभ्यास के बाद पत्रकारिता के विद्यार्थी अपना ब्लॉग, समाचार, आलेख और मनपसंद कविता कहानियां आदि लिख लेते हैं।


सुखद बात यह रही कि अब तक बीजेएमसी और एमजेएमसी के लगभग 2000 विद्यार्थियों ने कौशल विकास की इस कार्यशाला में हिस्सा लिया। उसमें से बहुत अधिक संख्या में विद्यार्थी मीडिया में सम्मानित पदों पर कार्यरत हैं। सोचने वाली बात है कि हिंदी के समाचार पत्रों और टीवी चैनलों की संख्या सबसे अधिक है लेकिन कंप्युटर पर हिंदी कोई नहीं सिखाता। लिहाजा कई विद्यार्थियों को डिजिटल हिंदी लेखन न आने के कारण उन्हें नौकरी नहीं मिलती। 



कई विद्यार्थी तो इंटर्नशिप में पत्रकारिता पेशे की बारीकियां सीखने के बजाए डिजिटल हिंदी लिखने का अभ्यास करते हैं और समय समाप्त हो जाता है। चूंकि कंप्युटर पर पहले से हिंदी लेखन का अभ्यास नहीं होता तो इंटर्नशिप में भी नौकरी के अवसर हाथ नहीं आते। इसीलिए जरूरी है कि आप डिजिटल हिंदी यानि मंगल टाइपिंग सीखकर मीडिया में वांछित कौशल को विकसित करेंं।


                                        https://www.youtube.com/watch?v=IQFibjVfW8k 

          डिजिटल हिंदी भारत अभियान का सफर  #डिजिटलहिंदीभारत

                                IMS, NOIDA




आइएमएस, नोएडा में कार्यरत रहते हुए लगभग 5 वर्षो में सैकड़ो विद्यार्थियों को डिजिटल हिंदी भारत अभियान से जोड़कर कौशल विकास किया गया। जिसमें पत्रकारिता एवं जनसंचार के विद्यार्थियों का बहुत सहयोग मिला और रोजगार के क्षेत्र में उनकी सफलता ने कार्यशाला के महत्व को प्रमाणित भी किया। खास बात यह भी रही कि प्रथम सेमेस्टर के विद्यार्थियों ने महज दो हफ्ते में हिंदी सीखी, जिससे उत्साहित होकर उन्हें आगे बढ़ाया गया और बच्चों ने देश के नामचीन पत्रकारों से साक्षात्कार किया, जिसे प्रायोगिक समाचार पत्र में प्रकाशित किया गया। 

                                 SHARDA UNIVERSITY



शारदा विश्वविद्यालय में भी बहुत विद्यार्थियों ने हिंदी सीखने में रूचि दिखाई और यहां सफर कुछ और आगे बढ़ा और छात्र—छात्राओं ने मार्गदर्शन के तहत हर महीने प्रायोगिक हिंदी समाचार पत्र भी प्रकाशित किया। खास बात यह थी कि शारदा में प्रिंट मीडिया प्रोडक्शन की दो घंटे की क्लास ​एक न्यूजरूम की तरह ही काम करती थी। विद्यार्थी अपने समाचार पर चर्चा करते और तय हो जाने के बाद उसकी रिपोर्टिंग और फोटोग्राफी की जाती थी। अचरज की बात तो यह रही कि नेपाल के विद्यार्थियों ने भी हिंदी में आलेख लिखे। 


                                 AMITY UNIVERSITY



एमिटी विश्वविद्यालय के विद्यार्थी भी डिजिटल हिंदी भारत अभियान से जुड़े और उन्होंने भी कंप्युटर पर हिंदी लेखन के गुर सीखे और कौशल विकास कर नए आयाम तय किए। कुछ विद्यार्थियों ने बताया कि डिजिटल हिंदी पर अच्छी पकड़ होने के बाद उन्हें अच्छे मीडिया संस्थानों ने इंटर्नशिप के दौरान सम्मानजनक नौकरी के अवसर प्राप्त हुए। यही नहीं डिजिटल हिंदी कौशल के कारण उन्हें अन्य विद्यार्थियों की अपेक्षा विशेष स्थान और प्राथमिकता मिली।


                                         OTHER UNIVERSITIES & INSTITUTES



अन्य शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों ने भी डिजिटल हिंदी कौशल को सीखने में रूचि दिखाई और दो से तीन सप्ताह में ही अभ्यास कर टाइपिंग में गति हासिल की। कई विद्यार्थियों ने अपना ब्लॉग बनाया और लेखन को जारी रखा तो कुछ ने अध्ययन के दौरान ही स्वतंत्र लेखन से अपनी एक पहचान बनाई। 



सुखद बात यह भी थी ​कि एमजेएमसी के विद्यार्थियों ने तो डिजिटल हिंदी सीखने के बाद अपने सारे प्रायोगिक कार्य यानि असाइनमेंट और लघु शोध यानि डेज़रटेशन भी स्वयं ही हिंदी में तैयार कर लिए और प्रिंट करवाकर जमा कराए। कई विद्यार्थियों ने तो प्रायोगिक समाचार पत्र भी कंप्युटर पर खुद ही तैयार कर लिया और उसकी रंगीन प्रतियां देखकर बाहरी परीक्षक भी बहुत प्रभावित हुए। 



जिन विद्यार्थियों ने डिजिटल हिंदी लेखन सीखने के बाद अभ्यास जारी रखा, उन्हें बहुत लाभ हुआ। अचरज तब हुआ जब एक लॉ के विद्यार्थी ने कार्यशाला में हिंदी सीखने के बाद अपने कंप्युटर पर अभ्यास किया और कुछ महीनों बाद बताया कि वह कोर्ट के दस्तावेज और प्रोपर्टी के कागजात अब खुद ही हिंदी में तैयार कर लेता है। उसने बताया कि सिर्फ दस्तावेज तैयार करने से ही उसे अच्छी आमदनी हो जाती है। यह जानकर पहली बार अहसास हुआ​ कि हिंदी सीखने के कई फायदे हैं।


वैसे डिजिटल हिंदी सीखने से मीडिया के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में भी रोजगार और स्वरोजगार का मार्ग प्रशस्त होता है। जैसे विदेश सेवा, दूतावास, अनुवाद, जनसंपर्क, सूचना सेवा, फिल्म, ओटीटी प्लेटफार्म, सोशल मीडिया प्रबंधन, वेबसाइट निर्माण, कंटेंट राइटिंग, राजभाषा अधिकारी, कारपोरेट कम्युनिकेशन, इवेंट मैनेजमेंट, स्क्रिप्ट राइटिंग आदि।


डिजिटल हिंदी भारत अभियान के तहत कंप्युटर पर हिंदी लेखन की कार्यशाला के बाद सैकड़ो विद्यार्थियों ने मीडिया सहित अन्य क्षेत्रों में भी वांछित काम और मुकाम हासिल कर कामयाबी की कई कहानियां लिखी। अपने विद्यार्थियों के उस विश्वास और परिश्रम पर हमेशा गर्व होता है। 

नीचे दिए लिंक में उनकी कामयाबी और राय देखी जा सकती है—

               1.    https://www.youtube.com/watch?v=PQRKOicN7LE
               2.    https://www.youtube.com/watch?v=uyZgN0s1Jik
               3.    https://www.youtube.com/watch?v=6zygqHSYb8k

यह बहुत ही गर्व और खुशी की बात है कि कौशल विकास से विद्यार्थियों को मीडिया में मनचाहा स्थान मिला। अब तक मेरे विद्यार्थी आज तक न्युज चैनल, इंडिया टीवी, एबीपी न्युज, न्युज 18 इंडिया, सीएनएन—आइबीएन, एनडीटीवी, ज़ी—न्युज, रिपब्लिक न्युज, इंडिया न्युज, सहारा समय, ईटीवी भारत, साधना न्युज, समाचार प्लस, पीटीसी, टीवी 100, फस्ट इंडिया न्युज, पारस टीवी, जीआरवी फिल्मस, मीडिया 24/7 इंकार्पोरेशन, फाइनेन्श्यिल एक्सप्रेस, नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान सहित देश के लगभग सभी प्रमुख समाचार—पत्रों व न्युज चैनलों सहित डिजिटल समाचार वेबसाइट आदि में अपने काम कर ख्याति प्राप्त करते हुए प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं।

डिजिटल हिंदी भारत, कौशल विकास कार्यशाला के लिए संपर्क :-
                                                                                                       प्रोफेसर (डॉ ) सचिन बत्रा  
                                                                                                           संपर्क 7771002340

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Latest Update
March 15, 2021 #digitalhindiindia search/ research/ innovation for low cost solution 1st phase completed @drsachinbatra


#डिजिटलहिंदीइंडिया के तहत खोज /शोध /नवाचार से किफायती समाधान का पहला चरण सफल रहा। @डॉसचिनबत्रा
#मोबीप्युटर
#mobiputer

March 18, 2021
आखिरकार दस वर्षों के अनवरत प्रयासों के बाद महंगे कंप्युटर के चलते डिजिटल विभाजन को घटाने का किफायती विकल्प विकसित करने में सफलता प्राप्त हुई। साथ ही हिंदी पत्रकारिता के लिए अधूरे मोजो यानि मोबाइल पत्रकारिता को भी पूर्णता देने की कोशिश डिजिटल हिंदी इंडिया अभियान के तहत कामयाब हुई। यह खोज पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए भी सुविधाजनक होगी।

AT-AWWH Anytime Anywhere Write Hindi

#mobiputer
#मोबीप्युटर
🌈 जय हिंद 🙏

March 21, 2021
Mobiputer - a low cost solution developed


She is happy to have her own #mobiputer developed with an old mobile. Now learning English & Hindi composing. 
खुश होकर कहती है कि मेरे पास मेरा अपना मिनी कंप्युटर #मोबीप्युटर है। पापा ने बनाया, मेरे लिए....

#digitalhindiindia
#डिजिटलहिंदीइंडिया
#मोबीप्युटर
#mobiputer
#Mobiputer

निष्कर्ष - एक दशक पूर्व निजी तौर पर शुरू किए गए अपने #डिजिटलहिंदीइंडिया अभियान के तहत यह #मोबीप्युटर समाधान हिंदी लेखन को आसान कर देगा, लेखन को गति देगा, साथ ही मोबाइल पत्रकारिता करने वाले मोजो पत्रकारों को भी कंप्युटर न होने पर कहीं भी कभी भी अपने समाचार लिखने की सुविधा और विकल्प देगा। यह समाधान ऐसे समय भी कारगर होगा जब आपका कंप्युटर साथ न दे रहा हो या कहीं अन्यत्र यात्रा करते समय आप अपने लेपटॉप की सुरक्षा को लेकर चिंतित हों या बोझ न उठाना चाहते हों। यह #मोबीप्युटर आपको कहीं भी अपने निजी कंप्युटर की कमीं महसूस नहीं होने देगा। यही नहीं यह किफायती समाधान खास तौर पर पत्रकारिता के उन विद्यार्थियों के लिए विकसित किया गया है जो कंप्युटर की महंगी कीमत के कारण डिजिटल सुविधाओं से वंचित रह गए हैं। वे इस समाधान के माध्यम से मंगल हिंदी/यूनिकोड हिंदी/देवनागरी इन—​स्क्रिप्ट सहित कृतिदेव में भी तीव्र गति से काम कर सकेंगे।

🌈 जय हिन्द 🙏

  APRIL 3, 2021
Best Digital Media Educator of the Year National Award
by- Media Federation of India, Delhi
@15th Media Excellence Awards 2021





मीडिया फैडरेशन आफ इंडिया द्वारा 3 अप्रेल को अपने 15वें मीडिया एक्सीलेस अवार्डस समारोह में #डिजिटलहिंदीइंडिया नवाचार अभियान के माध्यम से एक दशक तक पत्रकारिता के विद्यार्थियों का अनूठी कार्यशाला से कौशल विकास करने के लिए बेस्ट डिजिटल मीडिया एज्युकेटर आफ द इयर के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। यह पुरस्कार आइएमए सभागार में मीडिया फैडरेशन आफ इंडिया के अध्यक्ष श्री अरूण शर्मा सहित एएएफटी विश्वविद्यालय के चांसलर व नोएडा फिल्म सिटी के संस्थापक डॉ संदीप मारवाह ने प्रदान किया।



🌈 जय हिन्द 🙏 देशहित सर्वोपरि

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#मीडियासाक्षात्कार April 2, 2022 #mediasakshatkar

डिजिटल हिंदी भारत अभियान के तहत विद्यार्थियों के साथ एक दशक की यात्रा में ख्यातिनाम वरिष्ठ पत्रकारों और मीडिया विशेषज्ञों के साक्षात्कारों पर आधारित पुस्तक 'मीडिया साक्षात्कार' को देश के प्रतिष्ठित संस्थान मीडिया फैडरेशन ऑफ इंडिया ने प्रकाशित किया।



आखिरकार एक दशक तक विद्यार्थियों के साथ बुना गया एक सपना सच हुआ और देश के जाने - माने 30 चुनिंदा पत्रकारों के साक्षात्कारों को मीडिया साक्षात्कार पुस्तक में प्रकाशित करने में सफलता प्राप्त की। इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए मीडिया फैडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष श्री अरूण शर्मा जी को बहुत—बहुत साधुवाद कि उन्होंने प्रकाशन और विमोचन का संपूर्ण दायित्व निर्वाह किया।

2 अप्रेल 2022 को इस पुस्तक का विमोचन 16वे मीडिया एक्सीलेंस अवार्ड समारोह के तहत दिल्ली के प्यारेलाल भवन में किया गया। मंच पर मीडिया साक्षात्कार पुस्तक लोकार्पण मारवाह स्टूडियो के चेयरमेन व एएएफटी विश्वविद्यालय के चांसलर माननीय डॉ.संदीप मारवाह जी, भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक माननीय प्रो.डॉ.संजय द्विवेदी जी, मीडिया फैडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष आदरणीय श्री अरूण शर्मा जी, ऑल इंडिया रेडियो के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर आदरणीय श्री लक्ष्मीशंकर बाजपेयी जी, आज तक के डिप्टी एग्जीक्युटिव प्रोड्यूसर श्री सुप्रतिम बैनर्जी, टीवी 9 भारतवर्ष के एग्जीक्युटिव एडिटर श्री दिनेश गौतम, अमर उजाला के कंसल्टिंग एडिटर डॉ. प्रवीण तिवारी, इंडिया टीवी के सीनियर एग्जीक्युटिव प्रोड्यूसर श्री दिनेश कांडपाल, यूएनआई के डिप्टी एडिटर श्री आशुतोष भाटिया व पूर्व एंकर श्रीमती मीनाक्षी शेरॉन सहित पुस्तक में अध्याय लेखन करने वाले विद्यार्थियों ने किया। इस मौके पर मीडिया व मीडिया शिक्षण सहित जनसंपर्क विशेषज्ञ और विविध विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी भी मौजूद थे। #मीडिया_साक्षात्कार #media-sakshatkar



'मीडिया साक्षात्कार' पुस्तक पर हाल ही में एक समीक्षा भी प्रकाशित हुई।
                                                   https://citizenpostdaily.in/?p=28382

#डॉ_सचिन_बत्रा #dr_sachin_batra #drsachinbatra_book_mediasakshatkar

#मीडियाफैडरेशनऑफइंडिया #मीडिया_फैडरेशन_ऑफ_इंडिया #mediafederationofindia


 APRIL 26, 2024 Indian Institute of Mass Communication, IIMC - Delhi
Workshop on Digital Hindi Composing


#iimc_delhi @IIMC-India #indianinstititeofmasscommunication

🌈 जय हिन्द 🙏 देशहित सर्वोपरि

Sunday, March 22, 2020

R K Lakshman - खबरों के अखाड़े में लक्ष्मण का आम आदमी - डॉ सचिन बत्रा


Published in Navbharat Times - December 21, 2019
https://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/nbteditpage/story-of-common-man-cartoonist-rk-lakshman/


यह महीना एक तरह से आम आदमी का महीना है। 24 दिसंबर 1951 को उस ‘कॉमन मैन’ का जन्म हुआ जिसमें इस देश के साधारण और कमजोर आदमी ने अपना अक्स देखा। जिसके चेहरे की रेखाओं में हमने एक लंबे समय तक अपना यथार्थ देखा। यहां प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आर.के लक्ष्मण के कार्टून करैक्टर ‘कॉमन मैन’ की बात हो रही है, जो इतिहास का हिस्सा होकर भी हमारे वर्तमान में घुला-मिला है। शायद ही कोई काल्पनिक चरित्र जनता के मन-मस्तिष्क में ऐसी जगह बना पाया हो। आज उसकी मूर्तियां हैं और वह डाक टिकट पर मौजूद है। अब से 68 साल पहले यह चरित्र ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकट हुआ। शुरू में वह बंगाली, तमिल, पंजाबी या फिर किसी और प्रांत के व्यक्ति की शक्ल में आता था। पर जल्द ही उसकी पहचान एक औसत हिंदुस्तानी की बन गई और वह अपने टेढ़े चश्मे, मुचड़ी धोती, चारखाने के कोट और सिर पर बचे चंद बालों से पहचाना जाने लगा।

                               चुपचाप सब देखता कॉमन मैन

                                                        December 21, 2019, 9:13 AM IST 


1985 में लक्ष्मण ऐसे पहले भारतीय कार्टूनिस्ट बन गए जिनके कार्टूनों की लंदन में एकल प्रदर्शनी लगाई गई। बकौल लक्ष्मण, उनकी कंपनी के मैनेजर पीसी जैन ने एक बार उनसे कहा कि ‘यदि मैं आम आदमी के दृष्टिकोण, उसकी समझ को ध्यान में रखकर कार्टून बनाऊं तो वे खूब लोकप्रिय और पठनीय होंगे। तब मैने कॉमन मैन की शुरुआत की।’ लक्ष्मण बताते हैं कि ‘मेरा आम आदमी बेहद असरदार है। वह आम जन के हर दुख-दर्द से वाकिफ है और देश की अस्सी प्रतिशत जनता की तरह सब कुछ चुपचाप देखते रहने को मजबूर है।’ 24 अक्टूबर 1921 को मैसूर में जन्मे लक्ष्मण का पूरा नाम रासीपुरम कृष्णस्वामी अय्यर लक्ष्मण था। पांच साल की उम्र से ही स्केचिंग करने वाले लक्ष्मण 12-13 की उम्र से ही अखबारों में छपने लगे थे।

स्कूल की पढ़ाई के बाद वह मुंबई के प्रख्यात जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में पढ़ना चाहते थे। उसमें दाखिले के लिए आवेदन दिया, जिसे कॉलेज के डीन ने यह कहकर खारिज कर दिया कि उनमें ड्रॉइंग बनाने की पर्याप्त योग्यता-क्षमता नहीं है। लक्ष्मण के बड़े भाई आर. के. नारायण जाने-माने अंग्रेजी कथाकार थे, जिनकी रचनाओं ‘गाइड’ और ‘मालगुडी डेज’ ने लोकप्रियता की ऊंचाइयां छुई थीं। आरके लक्ष्मण कहते हैं, ‘प्रबुद्ध संपादक एमवी कामथ ने एक बार कहा था कि कितना अच्छा होता यदि देश के राजनेता तुम्हारे कॉमन मैन की तरह गूंगे होते। तब मैंने जवाब दिया था कि राजनेताओं के वक्तव्य, उनकी हरकतें, उनकी जनसेवा के पीछे छिपी भावना ही मेरे व्यंग्य चित्रों को गति और ताजगी देती है। हम कार्टूनिस्ट उनकी उजली पोशाक को हटाकर उनकी असलियत सामने रखने की कोशिश करते हैं।’


लक्ष्मण ने राजनीति को निशाने पर लिया। उनका कहना था, ‘आजादी के बाद राजनेताओं ने एक आदर्श लोकतांत्रिक भारत की कल्पना की, जहां सभी प्रकार की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समानता हो। प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित, समृद्ध तथा स्वस्थ हो। मगर पचास साल बाद भी आम आदमी के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया है। दैनिक उपभोग की वस्तुओं का अभाव, महंगाई की मार, भारी कुपोषण और न जाने कितने कारण हैं जिन्होंने आम आदमी की हालत अत्यंत दयनीय बना दी है। इस सबके लिए प्रशासनिक भ्रष्टाचार, लापरवाही और शक्तिशाली लोगों का स्वार्थ जिम्मेदार है जो स्वतंत्र भारत में सरकारें बनने के साथ ही शुरू हो गया था।’ वह मानते थे कि आम आदमी का जीवन स्तर उन्नत करने की जिम्मेदारी सरकार की है। लक्ष्मण ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर व्यंग्य करते हुए कहा था कि ‘इस क्षेत्र में भी काफी प्रगति हुई है। पहले घोटाले हजारों में होते थे, फिर लाखों में होने लगे और अब करोड़ों में होते हैं।’

लक्ष्मण कहते हैं कि ‘कार्टूनिस्ट की तुलना बीरबल या तेनालीराम जैसे दरबारी मसखरों से नहीं की जा सकती। एक प्रजातांत्रिक ढांचे में उसकी भूमिका काफी बदली हुई है। उसका काम होता है अभिव्यक्ति के अधिकार का प्रयोग करते हुए व्यंग्य करना। यानी सत्ता की तलवार के नीचे रहकर डरते हुए नहीं, बल्कि अपने जन्मसिद्ध अधिकार की तरह व्यंग्य करना। उसे अधिकार है आलोचना का, भर्त्सना व शिकायत का, और प्रशासन व नेताओं के कामकाज में विसंगतियां दिखाने का।’ आगे वे कहते हैं कि ‘कार्टून बनाना दरअसल शिकायत करने और असहमति जताने की कला है। इस कला के तहत मजाकिया तेवरों में चीजों यानी मुद्दों की एक स्वस्थ पड़ताल की जाती है।’

इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि टाइम्स ऑफ इंडिया के 150 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में जो स्मारक डाक टिकट जारी हुआ, उस पर भी लक्ष्मण का ही एक कार्टून था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा था कि ‘हां, मैंने इतने लंबे समय तक मेहनत की है। मैं भूला नहीं हूं कि हम रंगीन कांच के शीशों से दुनिया देख सकते हैं। लेकिन उन पक्षियों के प्रति मेरी दिलचस्पी कम नहीं हुई है, जो हमारे चारों तरफ शोर मचाते हैं।’ टाइम्स ऑफ इंडिया में लक्ष्मण को काम करने की जो स्वायत्तता मिली, वह किसी भारतीय पत्रकार को कहीं और शायद ही मिल सके। लक्ष्मण हर दिन को आखिरी दिन की तरह जिया करते थे। एक बार उन्होंने कहा था कि वे रोज एक कार्टून बनाते हैं लेकिन अपने काम को तकलीफदेह मानते हैं। उन्होंने कहा था कि ‘हर सुबह मैं भुनभुनाता हूं, इस्तीफा देने की सोचता हूं और बड़ी मुश्किल से खुद को खींचकर ऑफिस तक ले जाता हूं। परंतु जब काम पूरा करके लौटता हूं तो मुझे अपना काम अच्छा लगने लगता है।’

आर के लक्ष्मण की यह साधना तब भी चलती रही जब वे अंतिम रूप से अस्पताल में भर्ती थे। वहां लेटे-लेटे वे समाचारों से इतर आम आदमी के बीच की खबरों में हास-परिहास गढ़ते थे। कई बार लगता है, लक्ष्मण का आम आदमी खुद लक्ष्मण ही हैं, जिन्होंने किसी कलाकार-पत्रकार की तरह ही लम्हों, परेशानियों और विसंगतियों को अपने भीतर पूरी गहराई से जिया और महसूस किया।

Friday, December 16, 2016

Drone in India: An eye in the sky भारत में ड्रोन : आसमान में आंखे

          भारत में ड्रोन : आसमान में आंखे  

                                                       Prof. (Dr.) Sachin Batra

ड्रोन एक ऐसा यांत्रिक पक्षी है जो पॉयलट के इशारे पर आसमान में उड़ाया जाता है और उसकी मशीनी आंखों को आसमान में तैनात कर एरियल यानि ऊंचाई से वांछित दृश्यों तसवीरों को रिकार्ड किया जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि बचपन के दौर में हम सेना के प्रदर्शनों में एयरोमॉडलिंग यानि मॉडल हवाईजहाज या हैलीकॉप्टर जिन्हें रिमोट संचालित खिलौना कहा जाता था उसकी हवाई बाजीगरी देखा करते थे जो रेडियो रिमोट की सहायता से आसमान में उड़ाया जाता था। उसी एयरमॉडल प्लेन का क्रमिक विकास हुआ और आज उसे ड्रोन के नाम से जाना जाता है। फर्क सिर्फ इतना है कि अब उसमें अत्याधुनिक कैमरा लगा होता है और उसे रिमोट ही नहीं किसी भी एंडरॉयड मोबाइल से भी संचालित किया जा सकता है। खास बात यह भी है कि ड्रोन की उड़ान के दौरान ही उससे ली जा रही ताज़ा तसवीरों को अपने मॉनीटर या स्क्रीन पर देख और रिकार्ड किया जा सकता है।  


इतिहास के पन्नों में ड्रोन
दरअसल ड्रोन शब्द का उदय 16 वी शताब्दी के बाद माना जाता है जिसमें मादा मधुमक्खी को आधार बनाकर यंत्र विकसित करने के प्रयास शुरू हुए लेकिन इसकी स्पष्ट व्याख्या 1930 के बाद ही सामने आई। ब्रूक्स के मुताबिक सन् 1935 में यूनाइटेड किंगडम की रॉयल एयरफोर्स ने रेडियो तरंगों से संचालित और निर्देशित पायलट रहित हवाई विमान तैयार किया था, जिसे नाम दिया गया क्वीन बी। वहीं ग्रूम्मन हैचेस और मालॉर्ड (1946) के मुताबिक इस प्रकार के रेडियो नियंत्रित विमानों को ड्रोन कहा जाने लगा, जिन्हें मुख्य तौर पर सैना टोह लेने के लिए इस्तेमाल करती थी।

एरियल फोटोग्राफी से ड्रोन तक का सफर

एरियल फोटोग्राफी की दुनिया में आज ड्रोन एक महत्वपूर्ण यंत्र है लेकिन इस दौर से पहले आसमान से दृश्यों को कैद करने की प्रक्रिया बहुत महंगी और जटिल थी। पाइक (2013) और प्रोफेशनल एरियल फोटोग्राफर एसोसिएशन एन.डी. के अनुसार एक फ्र्रेंच फोटोग्राफर गॉस्पर फ्लिक्स ट्यूरनॉच जिन्हें नाडार भी कहा जाता था, आसमान में गैस के गुब्बारे के ज़रिए तसवीरें कैद करने वाले पहले व्यक्ति माने जाते हैं। जिन्होंने कबूतरों, पतंगों और रॉकेट में कैमरा लगाकर फोटोग्राफी की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई। उस समय ड्रोन जैसा यंत्र सामने आया था, ही नाम लेकिन धीरे-धीरे आसमान से फोटोग्राफी की कोशिशें भारी भरकम हवाई विमानों से होते हुए एयरोमॉडल्स के बाद हल्के ड्रोन तक जा पहुंची। विश्व में ड्रोन की पहली घटना का उल्लेख करते हुए ट्रेम्यान और क्लार्क (2014) लिखते हैं कि पप्पाराजी फोटोग्राफरों ने 2010 में फ्रेच रिवेरा में अभिनेत्री पेरिस हिलटन पर पहला रिपोर्ताज बनाया था। इसका उल्लेख करते हुए कलर मैग्जीन में फ्लाईंग आई के संस्थापक ऐलेग्जेंडर थॉमस ने बताया कि उन्होंने ड्रोन का इस्तेमाल कर वीज्युअल्स जुटाने का प्रयास किया था और पप्पाराजी समूह को सेवाएं दी थी। हालांकि ड्रोन का उपयोग 1945 से लेकर 1990 तक सेना ने जासूसी और यु़द्ध के लिए किया लेकिन बाद में शौकिया फोटोग्राफर्स ने भी अपने उद्देश्य के लिए इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया।

आज विदेशों में तो ड्रोन को लेकर कई शोध हो चुके हैं और बाकायदा नियम और कानून भी मौजूद हैं लेकिन भारत में अब भी ड्रोन के निजी इस्तेमाल को लेकर एक तनाव और असहजता का माहोल बना हुआ है। लिहाजा सरकारी तंत्र ने भी पिछले एक साल में ड्रोन की निजी उड़ान पर प्रारंभिक नीतियां बना दी हैं। यानि आधारभूत ढ़ांचा तो तैयार है और जल्द ही कानून बनाकर ड्रोन संचालन को नियमित वैद्यता दी जा सकेगी। हालांकि पत्रकारिता के क्षेत्र में अभी भारत के किसी भी समाचार पत्र या न्यूज चैनल ने ड्रोन का अपने स्तर पर इस्तेमाल शुरू नहीं किया है। जैसे सीएनएन, बीबीसी, सीबीएस न्यूज़, एबीसी, एनबीसी, टेलीग्राफ और एलेफ नामक चैनल और अखबार कुछ वर्षो से समाचार संकलन के लिए ड्रोन उपयोग कर रहे हैं।

भारत: समाचारों में ड्रोन
इससे पहले कि हम भारत में ड्रोन से जुड़े नियमों और पाबंदियों की चर्चा करें यह जानना ज़रूरी है कि आखिर ड्रोन को लेकर नियम, कानून और पाबंदियों यानि वर्जनाओं की ज़रूरत क्यों है। दरअसल मोटे तौर पर तो ड्रोन यानि आसमानी कैमरा उड़ाने को लेकर जो सबसे बड़ी दहशत हमारे देश में है, वह है निजता का हनन, जासूसी और आतंकी हमलों का बढ़ता खतरा। सवाल यह है कि आखिर आसमान में उड़ाकर ड्रोन कैमरे से क्या रिकार्ड किया जा रहा है यानि उड़ाने वाले का मक्सद क्या है। इसी असहजता के कारण हमारे देश में पुलिस ने जहां शिकायत मिली वहां ड्रोन संचालक को या तो गिरफ्तार किया या रोक दिया। सच तो यह है कि अब भी पुलिस, प्रशासन और विमानपत्तन अधिकारियों के पास ड्रोन को लेकर पुख्ता कानून तो नही हैं लेकिन आम तौर पर लोगों की आपत्ति को आधार बनाकर निषिद्ध क्षेत्र में उड़ान और दुर्घटना से नुक्सान को आधार बनाकर ही मामले दर्ज करके रोकथाम की जा रही है। वर्ष 2015 में दो या तीन मामलों में पुलिस ने संझान लिया। वहीं 2016 में दर्जन भर से अधिक मामले पुलिस ने दर्ज किए। हालांकि ड्रोन उड़ाने की घटनाएं तो कई हुई लेकिन चूंकि उसकी शिकायत नहीं मिली या जानकारी होने से कई मामले पुलिस की पकड़ से बचे रहे। सच तो यह भी है कि देश के कई ईलाकों में तो पुलिस को भी पता नहीं था कि आखिर मामले को दर्ज कैसे किया जाए। हालांकि कई राज्यों की पुलिस ने आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली धाराओं में ड्रोन की उड़ान पर मामले दर्ज किए।

हिंदू में 8 जनवरी 2015 को प्रकाशित एक समाचार के मुताबिक चेन्नई पुलिस ने एक 29 वर्षीय युवक को ड्रोन उड़ाने पर गिरफ्तार किया। खबर में कहा गया कि दो विदेशी पर्यटकों द्वारा उड़ाया गया एक ड्रोन दुर्घटनाग्रस्त हुआ। इसपर धारा 287 यानि यंत्र के गैरजिम्मेदाराना इस्तेमाल और आइपीसी की धारा 336 यानि लोगों की सुरक्षा को खतरे में डालने के तहत मामला दर्ज किया गया। इसमें शहर के पुलिस कमिशनर एस जार्ज ने बताया कि इस यंत्र के गिरने से कोई घायल हो सकता है साथ ही निजता और सुरक्षा को भी खतरा पैदा होता है। वहीं म्यालापोर के डिप्टी कमिशनर ने कहा कि ड्रोन उड़ाने के लिए नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के डॉयक्टरेट जनरल और पुलिस से अनापत्ति प्रमाण-पत्र लेना आवश्यक है।

इसी प्रकार इंडियन एक्सप्रेस में 8 जुलाई 2015 को छपी एक खबर में मुम्बई पुलिस द्वारा रियल एस्टेट के दो कर्मचारियों को चैम्बूर के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सांइसेस परिसर के पास बगैर पुलिस अनुमति ड्रोन उड़ाने पर हिरासत में लेकर सीआरपीसी की घारा 144 के तहत मामला दर्ज किया गया। इसमें ज्वाइंट पुलिस कमिशनर देवेन भारती ने कहा कि हमने गृह विभाग को ड्रोन पैराग्लइडर के इस्तेमाल को नियमित और अनुमति के दायरे में लाने बाबत एक पत्र लिखा है। हालांकि इस समाचाार में पुलिस ने यह भी कहा है कि इस हवाई यंत्र के माध्यम से विस्फोटक ले जाने और जासूसी का अंदेशा होता है। मुम्बई के जूहू में भी इसी तरह का एक और मामला एशियन एज ने 1 मार्च 2016 को प्रकाशित किया। जिसमें नोवोटल होटल के स्क्वेयर रेस्टोरेंट में एक विवाह समारोह को ड्रोन से फिल्माने की एक शिकायत पर मामला दर्ज कर जयदीप शाक्रिया, इसरानी ओर शिव करमानी को थाने ले जाया गया और उनका ड्रोन आई-पैड जब्त करते हुए मामला दर्ज किया।

इसी प्रकार इंडिया टुडे में 6 फरवरी 2016 को पीटीआई के हवाले से छपी खबर के मुताबिक दिल्ली के करोल बाग में एक 23 साल के फोटोग्राफर राहुल को ड्रोन उड़ाने पर पुलिस ने धारा 188 यानि लोकसेवक द्वारा प्रख्यापित आदेश की अवहेलना करना और घारा 336 के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार करते हुए ड्रोन जब्त कर लिया। वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित समाचार में बताया गया कि 9 फरवरी 2016 को राजस्थान की जोधपुर पुलिस ने फोटोग्राफर दीपक वैष्णव को तब गिरफ्तार किया जब ऐतिहासिक किला मेहरानगढ की वीडियो रिकार्ड करते हुए उनका ड्रोन एक घर की छत पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हालांकि दीपक के विरूद्ध आइपीसी की धारा 336 के तहत मामला तो दर्ज हुआ लेकिन जयपुर के एडिशनल पुलिस कमिशनर क्राइम, प्रफुल्ल कुमार ने यह भी माना कि ड्रोन उड़ाने को लेकर नियम-कानून अब भी अस्पष्ट हैं।

इसी तरह 23 फरवरी 2016 को हिंदुस्तान टाइम्स की खबर में बताया गया कि मध्यप्रदेश में फोटोग्राफी निषिद्ध क्षेत्र खजुराहो के मंदिरों की ड्रोन से वीडियोग्राफी करने वाले अमेरिकी पर्यटक डेरेक बेसिमिर को गिरफ्तार किया गया। समाचार में खजुराहों पुलिस स्टेशन के इंचार्ज के जी शुक्ला ने बताया कि अक्टूबर 2014 में नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के डॉयक्टरेट जनरल ने एक सार्वजनिक सूचना में सुरक्षा में खतरे का उल्लेख करते हुए अगले आदेश तक ड्रोन की उड़ान को भारत में प्रतिबंधित कर दिया है। वहीं हिंदू में 21 अप्रेल 2016 को हैदराबाद के साइबराबाद में एक विवाह में ड्रोन के इस्तेमाल की शिकायत की खबर में रूप कुमार, युगांधर, कृष्ण कांत रेड्डी की गिरफ्तारी की खबर छपी। जिसमें बताया गया कि उनके ड्रोन जब्त कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां उन्हें ज़मानत पर रिहा किया गया।

भारत में ड्रोन की उड़ान के नियम-कायदे
बिज़नेस स्टेंडर्ड में 25 अप्रेल 2016 को और मीडियानामा में 26 मई 2016 को प्रकाशित समाचार के मुताबिक भारत में ड्रोन को उड़ाने के लिए DGCA यानि नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के डॉयक्टरेट जनरल द्वारा नीति निर्देश तय कर उसका प्रारूप जारी किया। इसके तहत ड्रोन उड़ाने के लिए एक व्यक्ति की उम्र 18 साल हो, वह भारतीय नागरिक होना चाहिए, उसे ड्रोन उड़ाने के लिए अपना UIN यानि यूनीक आइडेंटीफिकेशन नंबर प्राप्त कर पंजीकरण पहंचान संख्या लेनी होगी। यूआइएन प्राप्त ड्रोन को बिना अनुमति बेचा या खुर्द-बुर्द नहीं किया जा सकेगा, साथ ही UAOP यानि अनमैन्ड एयरक्राफ्ट ऑपरेटर परमिट लेकर ड्रोन पर फायरप्रूफ आइडी प्लेट लगानी होगी। इसके लिए 90 दिन पहले आवेदन करना होगा। ड्रोन संचालक को BCAS यानि ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी से अनुमति मंज़ूरी भी लेनी होगी और प्रति उड़ान की सूचना ATC यानि एयर ट्रेफिक कंट्रोलर को देनी होगी। नियमों के तहत नियंत्रित आकाश में ड्रोन उड़ान प्रतिबंधित रहेगी लेकिन मुक्त आकाश में ड्रोन उड़ाने की इजाज़त मिलेगी जिसकी जिला प्रशासन से अनुमति लेना अनिवार्य होगा लेकिन किसी भी स्थिति में ड्रोन पायलट की आंखों से ओझल नही होना चाहिए यानि उसके निगाह में रखने की हिदायत दी गई है। ड्रोन को 200 फीट तक उड़ाया जा सकेगा साथ ही उसे तयशुदा ऊंचाई से अधिक उड़ाने के लिए भी सूचना देना और अनुमति लेने की प्रक्रिया को पूरा करना पड़ेगा। ड्रोन की रात्रि में उड़ान को अनुमति नहीं दी जाएगी। नियमों में कहा गया है ड्रोन यंत्र का बीमा कराना होगा साथ ही दुर्घटना होने पर डीजीसीए, बीसीएएस और नागरिक उड्डयन सुरक्षा से संबंधिक निदेशक को 24 घंटे के भीतर सूचित करना होगा। इसमें बताया गया है कि ड्रोन संचालक उड़ान में प्रशिक्षित हो और उसके पास FRTOL यानि फ्लाइट रेडियो टेलीफोन ऑपरेटर लाइसेंस जैसा निजी विमान उड़ाने का लाइसेंस होना चाहिए। खास बात यह है कि नियमों में यह भी कहा गया है कि ड्रोन में संचार या संपर्क टूटने पर घर वापसी का फीचर या प्रोग्राम होना ज़रूरी है। उल्लेखनीय है कि डीजीसीए ने दो से डेढ सौ किलो के ड्रोन के पैमाने भी तय कर दिए हैं। हालांकि प्रतिबंधों का दायरे में कुछ स्थाई क्षेत्र भी आते हैं जैसे देश के सरहदी ईलाके, सैन्य क्षेत्र, वायुसेना क्षेत्र, ऐतिहासिक इमारतें, सरकारी भवन, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, रेलवे आरक्षित क्षेत्र सहित अन्य वर्गीकृत सरकारी कार्यालय और विज्ञान, तकनीक शोध से जुड़े सरकारी परिसर आदि। बताया जाता है कि ड्रोन से संबंधित इन आधारभूत नियमों को सरकार के विमानन सलाहकार मार्क मार्टिन ने तैयार किया।

भारत में पहला ड्रोन
हमारे देश में भी ड्रोन को रिपोर्टिंग के लिए आजमाया जा चुका है। यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का लिनकॉलिनस की ड्रोन जर्नलिज्म लैब के शोधकर्ता बेन क्रीमर ने अपने डीजेआई फैंटम क्वाडकॉप्टर यानि ड्रोन के जरिए पहली बार गुजरात के बडौदा जिले में खेलों की वीडियाग्राफी की और फोटो खींची। खास बात यह रही कि बेन ने बड़ौदा ओपन सॉकर मैच में खींची गई अपनी तसवीरों को टाईम्स ऑफ इंडिया को उपहार में दे दिया। अपने आपमें इस अनूठे प्रयास को टाईम्स ऑफ इंडिया ने 14 दिसंबर 2013 को अपने प्रकाशित करते हुए बेन को इसका श्रेय दिया, यही नहीं उसमें बेन के साथ-साथ फोटो खींचने वाले ड्रोन को भी इन्सेट में दिखाया गया।

हालांकि कई विश्वविद्यालय आज ड्रोन के जरिए अपनी एरियल फिल्म और प्रचार सामग्री बना रहे हैं। लेकिन बेन ने अपने भारत दौरे के समय बड़ौदा की एमएस यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के सहयोग से यूनिवर्सिटी की एरियल फोटोग्राफी और वीडियाग्राफी कर एक प्रचार फिल्म बनाई। वहां ड्रोन के जरिए यूनिवर्सिटी के भीतर और बाहर के कई एरियल दृश्य फिल्माए गए। ड्रोन के जरिए बनाई गई इस फिल्म को बेन ने गांधीनगर में आयोजित हुए राष्ट्रीय शैक्षिक सम्मेलन, वाईब्रंट गुजरात 2014 में प्रदर्शित किया। इसी प्रकार हिन्दुस्तान समाचार-पत्र के एक समाचार में बताया गया है कि आईआईटी दिल्ली के फिजिक्स इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों ने एक ऐसा छोटा ड्रोन तैयार किया है जो चार हज़ार फीट तक उड़ान भर सकता है। खास बात यह भी है कि यह अत्याधुनिक सेंसर से लैस है और यह तसवीरें खींचने में सक्षम तो है ही साथ ही रिमोट के जरिए आदेश दिए जाने पर इसमें लगी छोटी बंदूकों से हमला भी कर सकता है।

भविष्य में पत्रकारिता को नया आयम देगा ड्रोन
19वीं शताद्धी के मध्य में पॉल रिउटर ने स्टॉक मार्केट की खबरें भेजने के लिए जर्मनी के आचिन और बेल्जियम के ब्रूसेल्स के बीच कबूतरों का इस्तेमाल किया था और टैलीग्राफ ने भी खबरों के आदान-प्रदान के लिए कबूतरों को ही माध्यम बनाया था। लेकिन कोई नहीं जानता था कि अलगाववादी क्षेत्रों में बतौर हथियार इस्तेमाल किया जाने वाला युद्धक ड्रोन मीडिया और संचार के क्षेत्र में एक क्रांति पैदा कर देगा।

आने वाले समय में ड्रोन पत्रकारिता, टीवी चौनल की पूरी तसवीर ही बदलकर रख देगी। हो सकता है कि ड्रोन के साथ कैमरा ही नहीं माइक भी लगा हो और न्यूजरूम से समाचार पढ़ता एंकर चुनाव या रैलियों में बयान देने आए नेताओं से बिना रिपोर्टर ही संपर्क बनाने में कामयाब हो जाए। वहां ड्रोन नेताओं के आगे हवा में ही स्थिर हो जाए और एंकर स्टूडियो से सीधे ही नेता या मंत्री से सवाल-जवाब करने में सक्षम हो जाए। यही नहीं आपात स्थितियों में पत्रकार और पुलिस सभी ड्रोन पर ही आश्रित हो जाएं। कहीं बम फटने की खबर हो, कोई हादसा हो या दुर्गम क्षेत्रों में किसी नेता या मंत्री का दौरा सभी जगह ड्रोन यानि आंखे तैनात हो जाएं। यह वाकई होता हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि सबसे पहला कारण कि यह कम खर्चीला है और दूसरा यह कि इसके जरिए मीडिया अनियंत्रित क्षेत्रों या स्थितियों में भी अपनी पहुंच बना सकता है और आसानी से दृश्य हासिल कर सकता है।

रॉयटर्स इन्सटीट्यूट फॉर स्टडी ऑफ जर्नलिज्म की रिपोर्ट रिमोटली पॉयलेटेड एयरक्राफ्ट सिस्टम एण्ड जर्नलिज्म अपॉर्च्युनिटीज एण्ड चौलेंजेस ऑफ ड्रोन इन न्यूज गैदरिंग के मुताबिक यह तब तक एक ही सामयिक प्रश्न है जब तक यह उड़ने वाले वाहन प्रिंट और वीज्युअल मीडिया के दफ्तरों में खड़े नहीं दिखाई देते।

अब तक हमारे देश में सरहदों की सुरक्षा और निगरानी के लिए ही ड्रोन का उपयोग किया जाता रहा है। हाल ही में भारतीय सेना का नया हमलावर ड्रोन रूस्तम चर्चा का विषय बना। लेकिन अब सेना के बाद पुलिस-प्रशासन भी ड्रोन को निगरानी के लिए प्रयोग में ला रहे हैं। सहारनपुर में हुए सामूहिक संघर्ष के दौरान पुलिस प्रशासन ने अनमैन्ड एरियल व्हीकल यानि कैमरे वाले ड्रोन की सहायता से तंग गलियों का जायज़ा लिया था। वर्ष 2014 में वहां ड्रोन की मदद से ऐसे क्षेत्रों की निगरानी की जहां पुलिस को खतरा था। ऐसे में जहां पुलिस की गाड़ियां नहीं जा सकती थीं या घात लगाकर हमले का खतरा लगा, वहां ड्रोन से निगरानी की गई। खैर, उत्तर प्रदेश में पुलिस और प्रशासन ने इसे प्रायोगिक तौर पर इस्तेमाल करते हुए निगरानी यंत्रों के इस्तेमाल में अपनी पहल दर्ज कर दी। उसके बाद राजस्थान सरकार के विज्ञापनों में ड्रोन से फिल्माए दृश्य देखने को मिले और नोएडा पुलिस ने ट्रॉफिक नियंत्रण उल्लंघन के मामले दर्ज करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल शुरू किया। लेकिन विश्व के कई देश, सेना के अलावा ड्रोन को मौसम की जानकारी, प्राकृतिक आपदाओं के समय राहत कार्य करने, आगजनी की घटनाओं में बचाव कार्य करने और भौगोलिक परिवर्तन के अध्ययन में इस्तेमाल कर रहे है। ड्रोन के अपने फायदे हैं और इसीलिए दुनियां भर में इस यंत्र के उपयोग में तेज़ी आई है।

दरअसल ड्रोन रिपोर्टिंग के लिए एक सस्ता, सटीक और मारक यंत्र है। खास बात यह है कि आम तौर पर शहरों में होने वाले विरोध प्रदर्शनों के दौरान टीवी कैमरामैनों को बड़ी परेशानी आती है। जाहिर है ऐसे में पुलिस तैनात होती है और दृश्य बनाने में खासी मशक्कत करनी पड़ती है। यही नहीं अगर कहीं बाढ़ जाए या आग लगी हो या फिर कोई ईमारत दुर्घटनाग्रस्त हो गई हो। तब मीडियाकर्मियों को भी अपनी जान जोखिम पर रखते हुए समाचार संकलन करना पड़ता है। लेकिन ड्रोन पत्रकारिता इन सभी परेशानियों का समाधान मानी जा रही है। क्योंकि अगर आपके पास ड्रोन है तो आपको पुलिस से उलझने की जरूरत नहीं है, ही अग्निकाण्ड जैसे हादसों में अलग-अलग कोण से दृश्य बनाने में समय और परिश्रम करना होगा यही नहीं बाढ़ जैसी आपदा के दौरान नाव की मदद लेने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। सच तो यह है कि इस प्रकार की आपदाओं और दुर्घटनाओं में ड्रोन की मदद से बेहतर दृश्यों का संकलन किया जा सकता है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही भारतीय समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में सक्रीय रूप से ड्रोन पत्रकारिता देखने को मिलेगी।

परिचयः प्रो.(डॉ.) सचिन बत्रा एमिटी विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन में डीन और डॉयरेक्टर पब्लिक रिलेशन कार्यरत हैं। उन्होंने जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय से पत्रकारिता एवं जनसंचार में एमए और पीएच—डी किया है और हिन्दी पत्रकारिता में पीएचडी की है, साथ ही फ्रेंच में डिप्लोमा भी प्राप्त किया है। उन्होंने आरडब्लूजेयू और इंटरनेश्नल इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म, ब्रेडनबर्ग, बर्लिन के विशेषज्ञ से पत्रकारिता का प्रशिक्षण लिया है। वे दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और दैनिक नवज्योति जैसे समाचार पत्रों में विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं और उन्होंने राजस्थान पत्रिका की अनुसंधान खोजी पत्रिका नैनो में भी अपनी सेवाएं दी हैं। इसके अलावा वे सहारा समय के जोधपुर केंद्र में ब्यूरो इनचार्ज भी रहे हैं। इस दौरान उनकी कई खोजपूर्ण खबरें प्रकाशित और प्रसारित हुई जिनमें सलमान खान का हिरण शिकार मामला भी शामिल है। उन्होंने एक तांत्रिका का स्टिंग ऑपरेशन भी किया था। डॉ. सचिन ने एक किताब और कई शोध पत्र लिखे हैं, इसके अलावा वे प्रोफेशनल सोसाइटी ऑफ़ ड्रोन जर्नलिस्टस, अमेरिका के सदस्य भी हैं। वे गृह मंत्रालय के नेशलन इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिज़ास्टर मैनेजमेंट में पब्लिक इंफार्मेशन ऑफिसर्स के प्रशिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध हैं। उन्होंने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में 15 वर्ष काम किया और पिछले 6 वर्षों से मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
               

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